
पित्त पथरी शूल – कारण और निवारण
Gallstone Colic – Causes and Prevention
पित्तपथरी बनने के कारण:-
पित्ताशय यकृत के नीचे स्थित होता है। इसमें पित्त जमा होता रहता है जहाँ से वह छोटी आँत में जाक’ पाचन-क्रिया में सहायता करता है। पित्ताशय में पथरी निर्माण करने वाले कोलेस्ट्रोल का संचय होता है। यह कोलेस्ट्रोल पित्ताशय में जमा पित्त में घुलनशील होता है परन्तु कई बार, स्थायी कब्ज, मद्यपान, मांसाहार के कारण पाचन-क्रिया मन्द पड जाती है जिसके कारण पित्ताशय में कोलेस्ट्रोल घुल नहीं पाता तथा दूषित पदार्थों के संयोग से पथरी का रूप बन जाता है। उसे पित्त पथरी कहते हैं। प्रारम्भ में पथरी बालू के कण के समान बनती है, फिर दूषित वस्तुओं के संयोग से बढ़कर बड़े आकार में परिवर्तित हो जाती है तथा यहाँ से मल के साथ बाहर निकल जाती है तथा इसका पता रोगी को नहीं चलता। परन्तु बड़े आकार वाली पथरियाँ जब पित्त नली में प्रवेश करती हैं तो भयानक दर्द होने लगता है। जब तक ये पथरियाँ आँतों के भीतर नहीं पहुँच जातीं तब तक दर्द होता रहता है । इसे पित्त पथरी शूल कहते हैं।
पित्त पथरी के लक्षण:-
प्रारम्भ में रोगी पित्ताशय के आसपास बेचैनी महसूस करता है। इसके बाद नाभि के चारों ओर दर्द महसूस होने लगता है जो खाना खाने के बाद प्रारम्भहोने के बाद कुछ आराम मिलता है। पथरी के बढ़ जाने पर पेट के पूरे भाग में दर्द होने लगता है और कभी-कभी यह दर्द दाहिने कंधे तक पहुँच जाता है। यह दर्द अचानक शुरू होता है और कुछ घण्टों तक बना रहता है। पथरी के पित्त नली में रुक जाने पर कई बार सिर में चक्कर “आने लगते हैं और बुखार भी हो सकता है। अल्ट्रासाउण्ड द्वारा पथरी की स्थिति और उनकी संख्या का पता चल सकता है।
पथरी से बचने के उपाय:-
पथरी चाहे गुर्दे में हो या पित्ताशय में हो इसके बनने का सम्बन्ध विभिन्न स्त्राव की ग्रन्थियों की क्रियाशीलता से होता है। गलत आहार लेने से वात, पित्त, कफ बढ़ने के कारण शरीर की पाचन शक्ति और श्रावक प्रणाली का कार्य ठीक ढंग से नहीं हो पाता। शरीर के दूषित पदार्थ मूत्र में न घुलकर गुर्दे या पित्ताशय में संचित होने लगते हैं जो पित्त पथरी का रूप धारण कर लेते हैं इसलिए खान-पान में सुधार करके शरीर का शोधन करते रहना चाहिए। इससे पथरी बनने का डर नहीं रहता ।
छः बादाम की गिरी, छः मुनक्का, चार ग्राम खरबूजे की गिरी, दो छोटी इलायची और दस ग्राम मिश्री को आधा कप पानी में ठण्डाई की तरह पीसकर छानकर देने से यकृत एवं पित्ताशय की पथरी में आशातीत लाभ मिलता है।
पत्थर चट्टा के 3 4 पत्ते स्वच्छ करके कुचलकर 1 कप पानी में मिलाकर छानकर पीते रहना चाहिए
पथ्य:- भोजन सादा बिना घी, तेल वाला और आसानी से पचने वाला लें। जैसे— जौं, मूँग के छिलके वाली दाल, परवल, तुरई, लौकी, करेला, आँवला, अनार, मुनक्का, जैतून का तेल आदि का सेवन करें। प्रातःकाल योगाभ्यास भी करें।
अपथ्य माँसाहार भोजन, उड़द, गेहूँ, पनीर, मिठाई, नमकीन, मसालेदार तले हुए पदार्थ जैसे— वडा, डोसा, ढोकला आदि का सेवन न करें। पचने में समस्या करने वाली वस्तुएँ और अम्ल बढ़ाने वाली चीजों का सेवन बिल्कुल न करें।