
उषा पान क्या हैं , क्यों हैं अमृत
(Benefits of ushapan)
“काकचण्डीश्वर कल्पतन्त्र” नामक ग्रन्थ में रात के पहले प्रहर में पानी पीना विषतुल्य बताया गया हैं। मध्य रात्रि में पिया गया पानी “दूध” के सामान लाभप्रद बताया गया हैं। प्रात : काल (सूर्योदय से पहले) पिया गया जल माँ के दूध के समान लाभप्रद कहा गया हैं। सूर्योदय से पहले अर्थात कुछ तारों की छाया में मात्रा आठ अंजलि बासी पानी पीना बहुत लाभदायक है। वहीं आयुर्वेदीय ग्रन्थ ‘योग रत्नाकर’ अनुसार सूर्य उदय होने के निकट समय में जो मनुष्य आठ प्रसर (प्रसृत) मात्रा में जल पीता हैं, वह रोग और बुढ़ापे से मुक्त होकर सौ वर्ष से भी अधिक जीवित रहता हैं।
कैसे रखे जल (रखने की विधि) प्रयोग विधि : उषा पान के लिए पिया जाने वाला जल ताम्बे के बर्तन में रात भर रखा जाए, तो उस से और भी स्वस्थ्य लाभ प्राप्त हो सकेंगे। जल से भरा ताम्बे का बर्तन सीधे भूमि के संपर्क में नहीं रखना चाहिए, अपितु इसको लकड़ी के टुकड़े पर रखना चाहिए। और पानी हमेशा नीचे उकडू (घुटनो के बल – उत्कर आसान) बैठ कर पीना चाहिए।
अर्श: शोथ ग्रहण्यो ज्वर जठर जरा कुष्ठ मेदो विकारा, मूत्रघातास्र पित्त श्रवणगलशिरः श्रोणि शूलाक्षि रोगाः ।
ये चान्ये वातपित्तक्षतज कफकृता व्याधयः सन्ति जन्तोः, तांस्तानम्यासयोगादपहरति पयः पीतमन्ते निशायाः ॥
रात के अन्त में, पानी पीने का अभ्यास करने से बवासीर, सूजन, संग्रहणी, ज्वर, जठर, कोढ़, मेद के विकार, मूत्राघात, रक्तपित्त, नाक के रोग, गले के रोग, सिर के रोग, कमर का दर्द और आँख के रोग भी नष्ट हो जाते हैं।
सावधानियाँ जिसने स्नेहपान किया हो, अर्थात् घी या तेल पिया हो, जिसके घाव हों, जिसने जुलाब लिया हो, जिसका पेट अफर रहा हो, मन्दाग्नि हो गई हो, हिचकी आती हों, कफ और बादी के रोग हो रहे हों उनको नाक से पानी नहीं पीना चाहिये। विविध कफ – वातज व्याधियों, हिचकी, आमाशय व्रण(अल्सर), अफारा(आध्मान), न्यूमोनिया इत्यादि से पीड़ित लोगो को उषा पान नहीं करना चाहिए।