अश्वगंधा – एक दिव्य रसायन

अश्वगंधा का नाम
घोड़े के मूत्र
जैसी गंध होने
के कारण पड़ा
है। इसे असगन्ध भी कहते
हैं। राजस्थान के नागौर
में अधिक होने
के कारण इसे
नागौरी असगन्ध भी कहते
हैं। आयुर्वेद में
बाजीकरण संबंधी औषधियों में
इसकी गणना होती
है। यह रोग प्रतिरोधक
क्षमता बढ़ाता है।।

आयुर्वेदिक मतानुसार अश्वगंधा के गुण

अश्वगंधा की प्रवृत्ति
उष्ण, पुष्टिकर, वात
एवं कफनाशक है।
श्वेत कुष्ठ, खांसी
श्वास, कृमि, खुजली इत्यादि
चर्मरोग और आमवातनाशक
है। अश्वगंधा का
विधिपूर्वक एक वर्ष
तक लगातार सेवन
करने से शरीर
निर्विकार हो जाता
है। शीत ऋतु
में विशेषकर इसका
सेवन करने से
दुर्बलता दूर होती
है।

मात्रा– बच्चों के लिए
1 ग्राम चूर्ण, वयस्कों के
लिए 2 ग्राम चूर्ण
अनुपात में दूध,
पानी, शहद या
मिश्री के साथ।
अश्वगंधा की जड़
का चूर्ण विशेष
कर औषधीय प्रयोजन
में अधिक उपयोगी
होता है। अश्वगंधा
की जड़ के
चूर्ण को दूध,
गोघृत या गरम
पानी के साथ
सेवन करने से
बच्चों की कमजोरी
में, बड़ों की
दुर्बलता में और
वृद्धावस्था में लाभप्रद
होता है।

अश्वगंधा का सेवन से अच्छी नींद आती है। मन प्रसन्न रहता है। निद्रा कारक औषधियों की तरह कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। शारीरिक दर्द, चुनचुनाहट होना, उठने बैठने में दर्द होना आदि में अश्वगंधा लाभप्रद है।

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