आजीविका और कैरियर के विषय में कुंडली का दशम भाव और दशमेश सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाव और भावेश होता है।
इसके अतिरिक्त कैरियर के लिए द्वितीय, षष्ठ, सप्तम,नवम तथा एकादश भाव भी महत्वपूर्ण है।
दशम भाव जातक का कर्म क्षेत्र होता है जातक जो भी कार्य करेगा उसका निर्धारण दशम भाव करेगा।
इसके अतिरिक्त द्वितीय भाव धन भाव है इस भाव से जातक के धन का परीक्षण किया जाता है।
एकादश भाव लाभ भाव है आजीविका से जातक को कितना लाभ होगा उन सब विषयो का विचार एकादश भाव से किया जाता है।
षष्ठ भाव इस कारण आवश्यक है यह भाव सेवा और नौकरी का भाव है।
सप्तम भाव इस कारण क्योंकि दशम से दशम भाव व साझेदारी व्यापार का भाव है।
नवम भाव भाग्य भाव है कैरियर निर्माण आदि में जातक का भाग्य कितना साथ देगा इस बात का विचार नवम भाव से होता है।
दशमेश दशम भाव बली होकर जब भी द्वितीय भाव या भावेश अथवा लाभ भाव या भावेश से सम्बन्ध बनाएगा और साथ ही दशम भाव का सम्बन्ध योगकारी ग्रहो से हो छठे भाव से सम्बन्ध न हो तो जातक व्यावसायिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करेगा।
दशमेश या दशम भाव का सम्बन्ध छठे भाव या छठे भाव के स्वामी से होने पर जातक अधिकतर नौकरी ही करता है और नौकरी में ही अधिक सफलता प्राप्त होती है।
सप्तम भाव व्यापार का भाव है धन व लाभ भाव के साथ साथ दशमेश या दशम भाव का सम्बन्ध सप्तम भाव से बन जाए तथा साथ ही इस योग में कुंडली के योगकारक ग्रहो का युति या दृष्टि सम्बन्ध के द्वारा सहयोग प्राप्त हो जाए और यह सभी ग्रह बलबान हो तो जातक उच्च स्तर का व्यवसायी होता है।
उपरोक्त इन्ही योगो में भाग्येश का सम्बन्ध शुभ युति, दृष्टि, स्थिति के द्वारा बन जाए तो जातक का भाग्य व्यावसायिक क्षेत्र में अत्यंत साथ देता है और वह अधिक से अधिक धन लाभ अपने व्यवसाय से प्राप्त करता है।
कडली में बनने वाला राजयोग आजीविका साधन व कैरियर निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका रखता है।जिन जातको की कुंडली में योगकारी ग्रह व आजीविका में लाभ प्राप्त कराने वाले ग्रह कमजोर हो तब ऐसी स्थिति उन ग्रहो को बलवान करने के उपाय करने चाहिए।